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by on September 6, 2020
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विदेश से आई ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ उर्फ ‘मदर टेरेसा’ जो भारत में आकर गरीब लोगो की मदद के नाम पर उनका धर्म परिवर्तन करवाती थीं. उनको लोगों ने सर- आँखों पर इस कदर बैठा लिया कि आज 05/09/2020 को शिक्षक दिवस मनाने से ज्यादा लोग उनकी पुण्य तिथि मना रहें है। 09 सितम्बर 2016 को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मेसीडोनिया में) में हुआ था. तुर्क की रहने वाली मदर टेरेसा 18 साल की उम्र ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। इसके बाद यह आयरलैंड जाकर इन्होंने भारत में बच्चों को पढ़ाने के लिए
अंग्रेजी भाषा सीखी।
मदर टेरेसा ने सबसे अच्छा धंधा भारत में किया है. यहां आकर उन्होंने गरीबों की सेवा के नाम पर अरबों रुपये बटोरे थे. गरीबों को मुश्किलों का सामना करने की सलाह देकर खुद ऐश से जिंदगी बिताई. इसके अलावा कई चिकित्सा पत्रिकाओं में भी उनकी धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई और अपारदर्शी प्रकृति के बारे में सवाल उठाए गए, जिसमें दान का पैसा खर्च किया जाता था. एक पत्र में कनाडा के शिक्षाविदों सर्ज लारिवे, जेनेवीव चेनेर्ड और कैरोल सेनेचल ने लिखा कि क्लीनिक को दान में लाखों डॉलर मिले, लेकिन पीड़ित लोगों के लिए चिकित्सा देखभाल, व्यवस्थित निदान, आवश्यक पोषण और पर्याप्त एनाल्जेसिक की पर्याप्त मात्रा नहीं थी।
मदर टेरेसा ने बिमार लोगों को क्रास पर क्रास्ट की तरह तकलीफ़ झेलने की सलाह दी, जबकी खुद बिमार होने पर तो उन्होंने एक हाई – फाई अस्पताल में अपना इलाज कराया और कुछ 05/09/1997 में इनका देहांत हो गया। भारी मात्रा में दुनिया भर से दान में पैसा मिलने के बावजूद उनके संस्थानों की हालत दयनीय थी. खोजी पत्रकार जियानलुइगी नुज़ी ने 2017 में बताया कि वेटिकन के एक बैंक में मदर टेरेसा के नाम पर उनकी चैरिटी द्वारा जुटाई गई धनराशि अरबों डॉलर में थी।
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